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गेहूं की अधिक पैदावार लेने के लिए पहली सिंचाई के समय डाले यह खाद।

गेहूं की अधिक पैदावार लेने के लिए पहली सिंचाई के समय डाले यह खाद।
 
गेहूं की अधिक पैदावार लेने के लिए पहली सिंचाई

गेहूं देश में भोजन का मुख्य स्रोत माना जाता है इसलिए कृषि के क्षेत्र में गेहूं की फसल का महत्वपूर्ण योगदान होता है कृषि क्षेत्र में उनके एक अहम भूमिका भी है गेहूं के उन्नत और उच्च गुणवत्ता वाली फसल लेने के लिए कई महत्वपूर्ण कारक होते हैं जिनमें भूमि की तैयारी ,समय पर बुवाई के सही विधि हो सकता, तत्वों के सही आपूर्ति और जल प्रबंधन शामिल है इन सभी तरीकों को सही ढंग से अपनाने से किसान अपनी गेहूं की फसल की पैदावार को बढा सकता है फसल के पैदावार के लिए सही खाद और उर्वरकों का चयन बहुत आवश्यक होता है क्योंकि यह फसल वृद्धि और उत्पादन को प्रभावित करता है गेहूं की फसल के लिए सबसे अधिक जरूरी तत्वों में नाइट्रोजन, फास्फोरस ,पोटाश जिंक और सल्फर तत्व शामिल है हम गेहूं की फसल के लिए इन सभी तत्वों के महत्व और उनके उचित प्रयोग के बारे में बताएंगे।

खेत में पोषक तत्वों की कमी से गेहूं की फसल का उत्पादन कम होता है जिससे किसान की आय में भी कमी आती है इसलिए यह जानना आवश्यक है कि कौन से तत्व गेहूं की फसल के लिए जरूरी है और उन्हें किस रूप में और कितनी मात्रा में डालना चाहिए इसकी अभी कितनी आवश्यकता है कि हम रासायनिक उर्वरकों का  सही तरीके से प्रयोग करें ताकि भूमि की उर्वरता शक्ति बनी रहे और पर्यावरण भी कम दूषित हो गेहूं की फसल में जिंक का प्रयोग विशेष रूप से फसल की पैदावार और उत्पादकता को बनाने में सहायक होता है।

गेहूं की फसल के दौरान खाद का चयन और उनकी सही मात्रा का प्रयोग फसल के अच्छे वृद्धि के लिए आवश्यक है नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश यह तीन पोषक तत्व है जो गेहूं की फसल के लिए आवश्यक है इसके अलावा जिंक कौशल पर का भी प्रयोग फसल के सेहत के लिए आवश्यक है ।

गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा इस प्रकार होनी चाहिए।

नाइट्रोजन 60 किलोग्राम प्रति एकड़।

फास्फोरस 25 किलोग्राम प्रति एकड़।

पोटेशियम 25 किलोग्राम प्रति एकड़।

जिंक और सल्फर 10 किलोग्राम प्रति एकड़।

गेहूं की फसल में नाइट्रोजन के अतिरिक्त पोटाश की मात्रा अधिक होनी चाहिए गेहूं की फसल में फास्फेट और सल्फर की आवश्यकता कम होती है लेकिन फिर भी यह आवश्यक है गेहूं की फसल में उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर होता है गेहूं की फसल में कल्ले बढ़ाने के लिए कैल्शियम ,नाइट्रेट का प्रयोग किया जाता है कैल्शियम की कमी होने से पौधे जमीन से पोषक तत्व नहीं ले पाते इन पोषक तत्वों की कमी आप इन उर्वरकों से पूरी कर सकते हैं।

नाइट्रोजन -नाइट्रोजन पौधे के लिए सबसे आवश्यक पोषक तत्व है इसके प्रयोग से पौधे की वृद्धि तेजी से होती है और पौधे के हरियाली भी अधिक होती है नाइट्रोजन पौधे में पोटाशित थीसिस के लिए बहुत ही आवश्यक है नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत यूरिया है गेहूं की फसल में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए बिजाई के समय 20 से 30 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से यूरिया का प्रयोग कर सकते हैं और इसके बाद पहली और दूसरी सिंचाई पर आप एक बैग प्रति एकड़ के हिसाब से गेहूं की फसल की सही विधि और विकास के लिए डालना जरूरी है।


फास्फोरस - फास्फोरस पौधे में जड़ों का विकासऔर जड़ों को मजबूत करता है दाने की भराई में भी सहायता करता है इसके लिए डीएपी का प्रयोग किया जाता है जिसमें 40% फास्फोरस होता है यदि DAP प्राप्त नहीं हो रही है तो एनपीके का प्रयोग कर सकते हैं जिसमें पासपोर्ट की मात्रा हो।

पोटाश - पोटाश का प्रयोग दाने के आकार को बढ़ाने में सहायता करता है इसमें एम ओ पी के रूप में डाला जाता है जो दाने के विकास में सहायक है पोटाश की मात्रा 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है इसकी मात्रा भी मिट्टी की स्थिति और फसल की अवस्था के अनुसार कम या ज्यादा की जा सकती है।

जिंक- जिंक एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है जो गेहूं के वृद्धि में महत्वपूर्ण माना जाता है खासकर जड़ों के विकास और रोग प्रतिरोधक क्षमता में जिंक का प्रयोग किया जाता है जिंक को डीएपी के साथ नहीं डालना चाहिए इसे अलग से डालना चाहिए उनकी मात्रा लगभग 5 किलोग्राम प्रति एकड़ होनी चाहिए जिंक में रोग प्रतिरोधक क्षमता फसल को कई तरह की बीमारियों से बचाती हैं जिसके कारण आपकी फसल उत्पादन और गुणवत्ता में वृद्धि होती है।


एनपीके - गेहूं की बिजाई के समय यदि आपके पास DAP नहीं है तो आप एनपीके का प्रयोग कर सकते हैं आजकल बाजार में विभिन्न प्रकार के एनपी प्राप्त है इनमें से 12 -32-16 में 32% फास्फोरस और 16% पोटाश होता है जबकि 10 -26 -26 में 26% फास्फोरस और पोटाश दोनों होते हैं इनका प्रयोग मिट्टी और फसल की आवश्यकता के हिसाब से किया जा सकता है यह गेहूं के फसल में फास्फोरस की कमी को दूर करके आपकी फसल के उत्पादन को बढ़ाने में सहायक है।