जो की बिजाई नमी वाली मिट्टी में केरा और बारानी क्षेत्रों में पोरा विधि से करें, जो कि अधिक पैदावार वाली किस्में

हरियाणा में जौ की फसल प्रदेश के सिरसा, हिसार, भिवानी, चरखी दादरी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, जींद, रोहतक व गुरुग्राम जिले में उगाई जाती है। हरियाणा में जौ की फसल 11,420 हेक्टेयर एरिया में बोई जाती है। जौ की पैदावार 33.85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसतन होती है। हरियाणा कृषि विवि के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने बताया कि बारानी एरिया में फसल बुवाई का समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच उत्तम है। पहली सिंचाई 40 से 50 दिनों के बाद और दूसरी बुवाई के
80-85 दिनों के बाद करनी चाहिए। अनुसंधान विभाग के निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि यदि मिट्टी में पर्याप्त नमी हो तो जौ की फसल को केरा विधि से बोना चाहिए। बारानी क्षेत्रों में जहां नमी की कमी हो, वहां पोरा विधि का इस्तेमाल कर बुआई की जाती है। समय पर बोई गई फसल के लिए 22 सेंटीमीटर और देर से बोई गई फसल के लिए 18 से 20 सेंटीमीटर लाइन से लाइन की दूरी सबसे अच्छे परिणाम देती है।
बीएच 902 और 946 हैं अधिक पैदावार वाली किस्में
दर बुवाई की स्थिति में 6 पंक्ति वाले जौ के लिए 35 किलोग्राम प्रति एकड़ और देर से बुवाई की स्थिति के लिए 45 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। दो पंक्ति वाले जौ के लिए 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। छह कतार वाली किस्म बीएच 75 से 16 क्विटंल, बीएच 393 से 19 क्विंटल, बीएच 902 से 20, बीएच 946 से 21 और दो कतार वाली किस्म-बीएच 885 20 क्विटंल प्रति एकड़ है।
इन बातों का भी रखें ध्यान
गेहूं और जौ अनुभाग के प्रभारी डॉ. करमल सिंह ने बताया कि 6 पंक्ति वाले जौ में 24 किलो नाइट्रोजन, 12 किलो फास्फोरस और 6 किलो पोटाश प्रति एकड़ सिंचित स्थिति में और 12 किलो नाइट्रोजन, 6 किलो फास्फोरस असिंचित स्थिति में डालें। दो पंक्ति वाले में 32 किलो नाइट्रोजन, 16 किलो फास्फोरस और 8 किलो पोटाश प्रति एकड़ डालें। खरपतवारों को कम करने के लिए पहली सिंचाई के बाद एक या दो बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।