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पोरा विधि से बिजाई करें. बीज 2 से 3 सेंटीमीटर अधिक गहरा न डालें, पीली सरसों की किस्म वाई एसएच 0401 बेहतर हकृवि ने सरसों की उन्नत किस्म आरएच 1975 विकसित की, 12 प्रतिशत अधिक देगी पैदावार

पोरा विधि से बिजाई करें. बीज 2 से 3 सेंटीमीटर अधिक गहरा न डालें, 
 
पीली सरसों की किस्म

सरसों की बिजाई अक्टूबर की शुरुआत में आरंभ हो जाती है, इसलिए किसान खेत को तैयार कर लें। सरसों की बिजाई पोरा विधि से इस प्रकार करें कि बीज 2 से 3 सेंटीमीटर से अधिक गहरा न पड़े। बिजाई से पहले खेत की दो से तीन बार अच्छी तरह जुताई कर लें। खेत की मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए।

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने सरसों की उन्नत किस्म आरएच 1975 विकसित की है। कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने बताया कि यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए एक उत्तम किस्म है, जो मौजूदा किस्म आरएच-749 से लगभग 12 प्रतिशत अधिक पैदावार देगी।

अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि राया-सरसों की आरएच-30, आरएच-406, आरएच-8812. आरएच-0749, आरएच-725, आरएच-761. 1424, 1706 व पीली सरसों की किस्म वाई एसएच 0401 ही बोएं।


तना गलन रोग से बचाने के लिए बीज को करें उपचारित


सरसों को तना गलन रोग से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें। बिजाई के समय सिंचित सरसों में 35 किलोग्राम यूरिया और 75 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में पोर दें। 35 किलोग्राम यूरिया पहली सिंचाई के समय डाल दें। बारानी इलाकों में सरसों के लिए 35 किलोग्राम यूरिया और 75 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट ही चुनें।

खेत में डालें जिप्सम, बढ़ेगी उपज यदि फास्फोरस डीएपी द्वारा ही डालें तो खेत को तैयार करते समय ही 100 किग्रा जिप्सम प्रति एकड़ डालें। गंधक वाले रसायनों के प्रयोग से जहां तिलहनी फसलों की उपज में वृद्धि होती है वहां तेल की मात्रा में भारी सुधार होता है।


जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करें

यदि जमीन में जस्ता की कमी हो तो प्रति एकड़ बिजाई के समय 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट 20-25 किलोग्राम सूखी भुरभुरी मिट्टी में मिलाकर खेत को तैयार करते समय मिला दें।

छिड़काव शाम को करें, मधुमक्खियों को नुकसान नहीं होगा

सरसों अनुभाग में अध्यक्ष डॉ. राम अवतार ने बताया कि सरसों की अगेती व पछेती फसल में कई प्रकार की बीमारियों का प्रकोप हो सकता है। जिनकी किसान समय से पहचान कर रोकथाम कर सकते हैं। बीमारियों की रोकथाम के लिए किए जाने वाले छिड़काव सदैव सायंकाल को 3 बजे के बाद करें ताकि मधुमक्खियों को कोई नुकसान न हो।