सरसों की फसल में आ सकता है अल्टरनेरिया ब्लाइट, सफेद रतुआ व तनागलन रोग, समय पर पहचान कर रोकथाम करें
सरसों रबी सीजन की महत्वपूर्ण फसल है। हरियाणा में सरसों मुख्य रूप से रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, हिसार, सिरसा, भिवानी व नूंह जिलों में बोई जाती है। किसान सरसों की बीमारी की समय रहते अच्छी तरह पहचान कर उनका आसानी से रोकथाम कर सकते हैं।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने बताया कि अगेती व पछेती सरसों की फसल में कई प्रकार की बीमारियों का प्रकोप हो सकता है, जिनकी किसान समय से पहचान कर रोकथाम कर अधिक पैदावार ले सकते हैं। उन्होंने बताया कि किसान फसल की बीमारियों की रोकथाम के लिए किए जाने वाले छिड़काव हमेशा सायंकाल को 3 बजे के बाद करें ताकि मधुमक्खियों को कोई नुकसान न हो, जो उपज बढ़ाने में सहायक होती हैं। तिलहन विभाग के पादप रोग विशेषज्ञ के अनुसार सरसों की फसल में कई बीमारियों का प्रकोप होने का खतरा रहता है, जिसके चलते इसकी पैदावार में कमी आ जाती है। इसलिए किसानों को फसल की अच्छी उपज हासिल करने के लिए इन बीमारियों को समय से पहचानना बहुत जरूरी है। सरसों की फसल की मुख्य बीमारियों की पहचान कर उनकी रोकथाम के लिए किसान विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश किए गए फफूंदनाशकों ही प्रयोग करें ताकि बीमारी का सही समय पर उचित प्रबंध हो सके।
हल्की सिंचाई करें, फसल में पानी जमा न होने दें
सरसों अनुभाग में अध्यक्ष डॉ. रामअवतार ने बताया कि सरसों की अल्टरनेरिया ब्लाइट, फुलिया और सफेद रतुआ बीमारी के लक्षण नजर आते ही 600 ग्राम मैंकोजेब डाइथेन या इंडोफिल एम 45 को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतर पर 3 से 4 बार छिड़काव करें। इसी प्रकार तना गलन रोग के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करें। जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग का प्रकोप हर साल होता है वहां बिजाई के 45 से 50 दिन और 65 से 70 दिन के बाद कार्बेन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत की दर से दो बार छिड़काव करें। किसान सिंचाई करते समय ध्यान रखें की हल्की सिंचाई ही करें। खेत में पानी जमा न होने दें। ज्यादा पानी लगाने से और पानी का ठहराव ज्यादा समय तक होने से मिट्टी में पैदा होने वाली फफूंद रोगों के फैलने की समस्या को देता है।
ये हैं मुख्य बीमारी और उनके लक्षण, कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर करें बचाव
अल्टरनेरिया ब्लाइट... अनुसंधान निदेशक
डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि सरसों की फसल की यह मुख्य बीमारी है। इस बीमारी में पौधे के पत्तों व फलियों पर गोल व भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। कुछ दिन बाद इन धब्बों का रंग काला हो जाता है और पत्ते पर गोल छल्ले दिखाए देने लगते हैं।
फुलिया या डाउनी मिल्ड्र...
इस बीमारी में पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और धब्बों का ऊपरी भाग पीला पड़ जाता है व इन धब्बों पर चूर्ण सा बन जाता हैं।
सफेद रतुआ... सरसों की इस बीमारी में पत्तियों पर सफेद और क्रीम रंग के छोटे धब्बे से प्रकट होते हैं। इससे तने व फूल बेढंग आकार के हो जाते हैं जिसे स्टैग हैड कहते हैं। यह बीमारी पछेती फसल में अधिक होती है।
तनागलन... तनागलन रोग में तनों पर लंबे आकार के भूरे जल शक्ति धब्बे बनते हैं जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तरह बन जाती है। ये लक्षण पत्तियों व टहनियों पर भी नजर आ सकते हैं तथा फूल आने या फलियां बनने पर इस रोग का अधिक आक्रमण दिखाई देता है जिससे तने टूट जाते हैं और तनों के भीतर काले रंग के पिंड बनते हैं।