प्राकृतिक खेती कर डेढ़ गुना तक बढ़ाई आय, फसलों को बीमारी से बचाने लिए देशी खाद का प्रयोग, सिंचाई भी कम
एक किसान ने प्राकृतिक खेती कर अपनी आमदनी बढ़ाई है। ऐसा करके दूसरों को शुद्ध खानपान देने में भी सहयोगी बन रहे हैं। साथ ही दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गए हैं। नांदल गांव निवासी जयाप्रकाश करीब 15 साल पहले बीएसएफ से रिटायर्ड हुए थे। उन्होंने लोगों को शुद्ध खानपान देने के इरादे से प्राकृतिक खेती शुरू की। हिसार यूनिवर्सिटी से डेढ़ माह का प्रशिक्षण लिया। शुरुआत में उन्होंने
1 एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती की।
पहले दो साल उत्पादन कम रहा, लेकिन
इसके बाद उत्पादन बढ़ता गया।
अब सामान्य फसल के समान ही उत्पादन हो गया है। इसमें धान 12 क्विंटल पति एकड़, बाजरा 8 क्विंटल प्रति एकड़ व गेहूं का उत्पादन 10 क्विंटल प्रति हो रहा है। फसलों को बीमारी से बचाने के लिए देसी खाद का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा नीम की निंबोली, धतूरा, मिर्च, तंबाकू के गल जाने पर उसका छिड़काव फसल पर करते हैं। जयप्रकाश बताते हैं कि उन्होंने 2 लोग वेतन पर रखे हैं। गेहूं को सामान्य फसल में 5 से 6 बार सिचाई करनी होती है. लेकिन प्राकृतिक खेती में 4 से 5 बार सिंचाई होती है। वह फसल को बाजार में बेचते हैं। इसमें जैविक खेतों के नाम से एक ग्रुप भी बनाकर सेंटर खोला हुआ है। यहां पर सामान्य फसल को अपेक्षा डेढ़ गुणा तक दाम मिलते हैं।
जयप्रकाश के बाद अब उनसे प्रेरणा लेकर राजकुमार, अजयपाल सिंह, उम्मेद, मेनपाल, भगतराम समेत कई किसान प्राकृतिक खेती करने लगे हैं। प्राकृतिक खेती की शुरुआत में इनको कुछ नुकसान हुआ, लेकिन इसके बाद अब बेहतर उत्पादन ले रहे हैं। जयप्रकाश को प्रदेश सरकार की तरफ से प्रगतिशील किसान के तौर पर 50 हजार रुपए का पुरस्कार दिया जा चुका है।