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पराली के बीच डेढ़ गुना बीज छिड़काव से गेहूं की सीधी बिजाई

पराली के बीच डेढ़ गुना बीज छिड़काव से गेहूं की सीधी बिजाई
 

खेतों में धान की फसल कटाई के बाद पराली को आग लगाने और प्रबंधन के लिए किसानों को काफी खर्च करना पड़ रहा है। इससे पर्यावरण प्रदूषण और डीजल की खपत बढ़ रही है लेकिन गांव अबूबशहर के किसान ने कटाई के बाद सीधे डेढ़ गुना बीज का छिड़काव कर गेहूं की बुआई कर दी है। पिछले काफी सालों से किसान इस विधि से पूरा गेहूं उत्पादन ले रहे हैं। उनकी जमीन में जीवाश्म और पोषक तत्व की मात्रा भी पूरी हो रही है।

गांव अबूबशहर में भारतमाला हाईवे के नजदीक किसान मोहनलाल गोदारा पुत्र बीरबल राम ने बताया कि वह पिछले 10 सालों से पराली नहीं जलाते हैं। खेत में अलग-अलग विधि से फसलों की बुवाई करते हैं। इस बार उन्होंने अपनी खेत में धान की खेती की थी जिसमें आधी सीधे बुवाई की थी। अब धान कटाई के बाद 24 एकड़ जमीन में पराली के बीच गेहूं की बुवाई की है। जिसमें बस बीज 40 किलो की जगह 55 से 60 किलो यानी लगभग डेढ़ गुना छिड़काव कर बिजाई कर दी है। ऊपर से पानी छोड़ दिया जाता है। जिससे पराली प्रबंधन के लिए कोई खर्च नहीं करना पड़ता है और बुवाई का खर्च भी नहीं होता है। जिस एरिया में बीज धरती पर नहीं पड़ रहा वहां पराली के ढेर को बिखेरने के लिए ट्रैक्टर के पीछे पाइप में सांकल डालकर रुटर चला देते हैं तो समाधान हो जाता है। पिछले काफी सालों से वह ऐसी बिजाई करते हैं और दूसरी फसल के मुकाबले अच्छा उत्पादन होता है। दूसरे खेत के मुकाबले सिंचाई भी एक कम करनी पड़ती है और खरपतवार नियंत्रण में भी कम खर्च होता है।

कृषि विशेषज्ञ बोले-जमीन में बढ़ता है जीवाश्म, सरकार देगी प्रोत्साहन राशि

छिड़काव विधि से गेहूं की बिजाई के दौरान मौके पर पहुंचे आत्मा स्कीम के तहत कृषि विभाग के राजेश बिश्नोई ने बताया कि विजय गोदारा की इस विधि से दूसरे किसान भी प्रेरणा ले सकते हैं।

उन्होंने इस बारे में डेमो भी दूसरे किसानों को दिखाया है और आगामी दिनों में फसल के बढ़वार और उत्पादन के विषय में भी कैंप लगाकर जागरुक किया जाएगा। इस विधि से खेत में बुवाई करने वाले किसानों को भी कृषि विभाग की ओर से रजिस्ट्रेशन के आधार पर ₹1000 प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।

कृषि विशेषज्ञ ने बताया कि इस विधि से पूरी पराली डीकंपोज होकर मिश्रित होती है। जिससे जीवाश्म की मात्रा बढ़ती है। जमीन में पोषक तत्व पूरे होते हैं और जल संग्रहण क्षमता में इजाफा होता है। जो जमीन उपजाऊ बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।